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Punjab News: ‘आतंकवादियों से संबंध रखने वाले कांस्टेबल की बिना जांच बर्खास्तगी सही’, हाई कोर्ट ने दी महत्वपूर्ण टिप्पणी

Punjab News: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने 1988 में आतंकवादियों से कथित संबंध रखने वाले एक कांस्टेबल की बिना किसी जांच के बर्खास्तगी को उचित और न्यायसंगत ठहराया है। हाई कोर्ट ने कहा कि उस समय पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था और कोई भी गवाह सामने आने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे हालातों में जांच प्रक्रिया कठिन थी, इसलिए बर्खास्तगी को न्यायोचित माना गया।

Punjab News: 'आतंकवादियों से संबंध रखने वाले कांस्टेबल की बिना जांच बर्खास्तगी सही', हाई कोर्ट ने दी महत्वपूर्ण टिप्पणी

मामला: कांस्टेबल दलबीर सिंह की बर्खास्तगी

इस मामले की शुरुआत 1981 में हुई, जब कांस्टेबल दलबीर सिंह को जालंधर कैंट में तैनात किया गया था। 1988 में, पंजाब सरकार ने उन्हें आतंकवादियों से कथित संबंधों के कारण बिना किसी जांच या चार्जशीट के बर्खास्त कर दिया। कांस्टेबल दलबीर सिंह ने इस आदेश के खिलाफ सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। उनका तर्क था कि न तो उन्हें कोई चार्जशीट दी गई और न ही उनके खिलाफ कोई जांच प्रक्रिया चलाई गई।

कांस्टेबल ने अपने मुकदमे में यह दावा किया कि उनका निलंबन गैरकानूनी था क्योंकि किसी भी प्रकार की प्रारंभिक जांच या सुनवाई नहीं की गई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उनके खिलाफ पेश किए गए आरोप पूरी तरह से असत्य और बिना किसी ठोस प्रमाण के थे।

निचली अदालत का फैसला

मामले की सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट ने पंजाब सरकार के आदेश को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट का मानना था कि बिना जांच के बर्खास्तगी का आदेश सही नहीं है। अदालत ने कहा कि संबंधित प्राधिकारी ने विभागीय जांच की आवश्यकता को नजरअंदाज कर कांस्टेबल को बर्खास्त किया, जो कि नियमों के अनुसार सही नहीं है।

पंजाब सरकार की अपील

ट्रायल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार ने उच्च न्यायालय में अपील की। सरकार का तर्क था कि निचली अदालतें मामले की गंभीरता को नहीं समझ पाईं और यह कि आरोपी कांस्टेबल आतंकवादियों के साथ मिलकर पंजाब में अवैध गतिविधियों में शामिल था।

सरकार ने यह भी कहा कि 1980 के दशक के अंत में पंजाब में आतंकवाद चरम पर था, और ऐसे माहौल में विभागीय जांच करना व्यावहारिक नहीं था। इसके अलावा, सरकार का यह भी तर्क था कि आरोपी कांस्टेबल का पद पर बने रहना न केवल सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक था बल्कि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ भी था।

हाई कोर्ट का फैसला

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने मामले की गहन सुनवाई के बाद सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि विभाग के पास कांस्टेबल दलबीर सिंह के आतंकवादियों से संबंध होने और अवैध गतिविधियों में लिप्त होने के पर्याप्त सबूत थे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि उस समय पंजाब में आतंकवाद के कारण विभागीय जांच कर पाना बेहद कठिन था। गवाह डर के कारण सामने नहीं आ रहे थे, और इस स्थिति में जांच पूरी होने तक कांस्टेबल को सेवा में रखना न केवल जोखिमपूर्ण था बल्कि यह सार्वजनिक हित में भी नहीं था।

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “विभागीय जांच प्रक्रिया लंबी हो सकती थी और इससे सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता था। इसके अलावा, उस समय आतंकवाद का प्रभाव इतना व्यापक था कि कोई भी व्यक्ति या गवाह सामने आकर बयान देने के लिए तैयार नहीं था।”

आतंकवाद के दौर में चुनौतियाँ

1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था। उस समय कई सरकारी अधिकारी, पुलिसकर्मी और आम नागरिक आतंकवादियों के निशाने पर थे। ऐसे में सरकारी और सुरक्षाबलों के लिए चुनौतीपूर्ण हालात पैदा हो गए थे। कई अधिकारी और पुलिसकर्मी आतंकवादी संगठनों से दबाव में आकर या डर के कारण उनके साथ मिलकर काम करने लगे थे।

पंजाब सरकार और पुलिस विभाग के लिए उस समय यह बड़ी चुनौती थी कि किस प्रकार इन आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़े सरकारी अधिकारियों और कर्मियों की पहचान की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। कांस्टेबल दलबीर सिंह का मामला भी इसी तरह की स्थिति का एक उदाहरण है, जिसमें विभागीय जांच के बिना ही बर्खास्तगी का आदेश दिया गया।

न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणी

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि कानून के कुछ अपवाद होते हैं, खासकर जब मामला सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा हो। ऐसे मामलों में नियमों का कठोर पालन हमेशा संभव नहीं होता है, विशेषकर तब जब राष्ट्र की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हो। अदालत ने माना कि उस समय की स्थिति को देखते हुए विभागीय जांच के बिना बर्खास्तगी करना सही और न्यायसंगत था।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि विभाग के पास कांस्टेबल के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे, और इस आधार पर बर्खास्तगी का आदेश दिया गया। कोर्ट ने कहा, “ऐसी स्थितियों में, जब राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हित का प्रश्न हो, तो कानूनी प्रक्रियाओं को लचीला बनाना आवश्यक हो जाता है।”

सार्वजनिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल उस समय की स्थिति को ध्यान में रखकर किया गया है, बल्कि यह आज के समय में भी महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़े मामलों में न्यायालयों और प्रशासन को तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

इस मामले में, कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना हो, तो प्रशासनिक फैसले कभी-कभी सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से हटकर भी लिए जा सकते हैं। ऐसे मामलों में न्यायालय का उद्देश्य केवल कानूनी प्रावधानों का पालन करना नहीं होना चाहिए, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देना भी आवश्यक है।

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